चैन पड़ता है दिल को आज न कल
वही उलझन घड़ी घड़ी पल पल
मेरा जीना है सेज काँटों की
उन के मरने का नाम ताज-महल
क्या सुहानी घटा है सावन की
साँवरी नार मध-भरी चंचल
न हुआ रफ़अ' मेरे दिल का ग़ुबार
कैसे कैसे बरस गए बादल
प्यार की रागनी अनोखी है
उस में लगती हैं सब सुरें कोमल
बिन पिए अँखड़ियाँ नशीली हैं
नैन काले हैं तेरे बिन काजल
मुझे धोका हुआ कि जादू है
पाँव बजते हैं तेरे बिन छागल
लाख आँधी चले ख़याबाँ में
मुस्कुराते हैं ताक़चों में कँवल
लाख बिजली गिरे गुलिस्ताँ में
लहलहाती है शाख़ में कोंपल
खिल रहा है गुलाब डाली पर
जल रही है बहार की मशअ'ल
कोहकन से मफ़र नहीं कोई
बे-सुतूँ हो कहीं कि बिंधियाचल
एक दिन पत्थरों के बोझ तले
ख़ुद-बख़ुद गिर पड़ेंगे राज-महल
दम-ए-रुख़्सत वो चुप रहे 'आबिद'
आँख में फैलता गया काजल
ग़ज़ल
चैन पड़ता है दिल को आज न कल
सय्यद आबिद अली आबिद