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चैन घर में न कभी तेरे नगर में पाऊँ | शाही शायरी
chain ghar mein na kabhi tere nagar mein paun

ग़ज़ल

चैन घर में न कभी तेरे नगर में पाऊँ

रूही कंजाही

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चैन घर में न कभी तेरे नगर में पाऊँ
ख़ुद को हर लम्हा मैं इक लम्बे सफ़र में पाऊँ

कोई आवाज़ न साया न हवा में हलचल
मो'तरिज़ सोच में क्या बैठ के घर में पाऊँ

तू कभी फूल कभी चाँदनी था मेरे लिए
अब तुझे पैरहन-ए-बर्क़-ओ-शरर में पाऊँ

मैं कहीं जिस्म कहीं और मिरी रूह कहीं
ख़ुद को बिखरा हुआ हर राहगुज़र में पाऊँ

मुझ से हर लम्हा कोई जुर्म नया होता है
इक न इक हादिसा हर ताज़ा ख़बर में पाऊँ

मैं गवाही पे तो तय्यार हूँ ख़ुद अपने ख़िलाफ़
वक़अ'त-ए-अद्ल जो मुंसिफ़ की नज़र में पाऊँ