चैन अब मुझ को तह-ए-दाम तो लेने देते
तेरे फ़ित्ने कहीं आराम तो लेने देते
आप ने इस का तड़पना भी गवारा न किया
दिल-ए-मुज़्तर से कोई काम तो लेने देते
मौत भी बस में नहीं है तिरे मजबूरों की
ज़िंदगी में कोई इल्ज़ाम तो लेने देते
पल में मंज़िल पे उड़ा लाए फ़ना के झोंके
लुत्फ़ रह रह के बहर-गाम तो लेने देते
हाथ भी तेरी निगाहों ने उठाने न दिया
दिल-ए-बेताब ज़रा थाम तो लेने देते
'सैफ़' हर बार इशारों में किया उस को ख़िताब
लोग उस बुत का मुझे नाम तो लेने देते
ग़ज़ल
चैन अब मुझ को तह-ए-दाम तो लेने देते
सैफ़ुद्दीन सैफ़