EN اردو
चार-सू सैल-ए-सिपाह-ए-मह-ओ-अख़्तर तेरा | शाही शायरी
chaar-su sail-e-sipah-e-mah-o-aKHtar tera

ग़ज़ल

चार-सू सैल-ए-सिपाह-ए-मह-ओ-अख़्तर तेरा

मोहम्मद अहमद रम्ज़

;

चार-सू सैल-ए-सिपाह-ए-मह-ओ-अख़्तर तेरा
सरहद-ए-शब से गुज़रता हुआ लश्कर तेरा

बे-कराँ तू ही महाकात-ए-शब-ओ-रोज़ में है
दश्त-ए-ज़ुल्मत तिरा रहवार-ए-मुनव्वर तेरा

कुर्रा-ए-बाद पे सद-रंग मनाज़िर तेरे
हल्का-ए-अर्ज़ में यक-नक़्श समुंदर तेरा

हर्फ़-ए-क़िर्तास जिहत-गीर है तफ़्सीर तिरी
अक्स-ए-आईना-ए-औरंग है जौहर तेरा

दाम-ए-गिर्दाब में बिफरी हुई मौजें तेरी
तह में पानी की गिराँ-माया-ए-गौहर तेरा