चाँदनी शब भर टहलती छत पे तन्हा रह गई
प्यार की हर याद-ए-रंगीं बे-सहारा हो गई
जोश दरिया का बना था क़हर कश्ती के लिए
बेबसी में ना-तवाँ पतवार रुस्वा हो गई
दास्तान-ए-ज़िंदगी की जब किरन ख़ामोश थी
तब हवा भी सुन के चुप सारा फ़साना रह गई
फूल पत्ते जब चमन से दर-ब-दर होने लगे
पुर सकूँ सरसब्ज़ दुनिया बन के सहरा रह गई
हर गली में लुत्फ़ का दरिया रवाँ था 'साहनी'
मेरी ख़्वाहिश ऐसी रुत में फिर भी तन्हा रह गई

ग़ज़ल
चाँदनी शब भर टहलती छत पे तन्हा रह गई
जाफ़र साहनी