चाँदनी छिटकी हुई हो तो ग़ज़ल होती है
जल-परी पास खड़ी हो तो ग़ज़ल होती है
दिल-नशीं कोई नज़ारा कोई दिलकश मंज़र
बात दिलचस्प कोई हो तो ग़ज़ल बनती है
या किसी दर्द में डूबी हुई आवाज़-ए-नहीफ़
या कोई चीख़ सुनी हो तो ग़ज़ल होती है
शाइ'री नाम है एहसास के लौ पाने का
आग सी दिल में दबी हो तो ग़ज़ल होती है
कोई खिलता हुआ चेहरा कोई ग़ुंचा कोई फूल
आँख सैराब हुई हो तो ग़ज़ल होती है
दरमियाँ आप के मेरे कोई हाइल हो जाए
कोई दीवार खड़ी हो तो ग़ज़ल होती है
कोई जिद्दत कोई नुदरत कोई पाकीज़ा ख़याल
हाँ कोई बात नई हो तो ग़ज़ल होती है
पहले शाइ'र को मिले ज़ेहन-ए-रसा क़ल्ब-गुदाज़
फिर वो लफ़्ज़ों का धनी हो तो ग़ज़ल होती है
आम हालात में होती नहीं ऐ 'ताज' ग़ज़ल
कुछ न कुछ दर्द-सरी हो तो ग़ज़ल होती है
ग़ज़ल
चाँदनी छिटकी हुई हो तो ग़ज़ल होती है
रियासत अली ताज