चाँद तारों से भरा ये आसमाँ दे जाऊँगा
ख़ुद रहूँगा धूप में और साएबाँ दे जाऊँगा
मेरे अच्छे हम-सफ़र तुझ को भी मैं जाते हुए
राह से भटका हुआ इक कारवाँ दे जाऊँगा
हैं ज़ुलेखाएँ बहुत कोई भी यूसुफ़ हो तो मैं
मिस्र के बाज़ार में उस को दुकाँ दे जाऊँगा
जिस ने तोड़ा दिल मिरा और ख़्वाब किरची कर दिए
उस को शीशे का बना मैं इक मकाँ दे जाऊँगा
मेरे साहिल पर रुकेंगी जिस नज़र की कश्तियाँ
उस की पलकों को नया इक बादबाँ दे जाऊँगा
दुश्मनों के सामने तो बे-ख़तर जाऊँगा 'शाद'
तीर उन के तोड़ कर फिर इक कमाँ दे जाऊँगा
ग़ज़ल
चाँद तारों से भरा ये आसमाँ दे जाऊँगा
अशरफ़ शाद