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चाँद सूरज शफ़क़ कहकशाँ ख़त्म-शुद | शाही शायरी
chand suraj shafaq kahkashan KHatm-shud

ग़ज़ल

चाँद सूरज शफ़क़ कहकशाँ ख़त्म-शुद

महबूब राही

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चाँद सूरज शफ़क़ कहकशाँ ख़त्म-शुद
अब उड़ूँ किस तरफ़ आसमाँ ख़त्म-शुद

रेगज़ार-ए-यक़ीं ता-ब-हद्द-ए-नज़र
सब्ज़ा-ज़ार-ए-ख़याल-ओ-गुमाँ ख़त्म-शुद

फिर हुआ यूँ कि आँख एक दम खुल गई
मुख़्तसर ये कि बस दास्ताँ ख़त्म-शुद

फ़िक्र के सारे गुल-बूटे मुरझा गए
ज़ेहन की सारी शादाबियाँ ख़त्म-शुद

उस ने आते ही सब खिड़कियाँ खोल दीं
दफ़अ'तन सर में था जो धुआँ ख़त्म-शुद

रिश्ते-नाते सभी जूँ के तूँ हैं मगर
इक तक़द्दुस जो था दरमियाँ ख़त्म-शुद

ज़ेहन को अब निचोड़ूँ तो टपके ग़ज़ल
थी कभी वो जो तब्-ए-रवाँ ख़त्म-शुद