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चाँद ओझल हो गया हर इक सितारा बुझ गया | शाही शायरी
chand ojhal ho gaya har ek sitara bujh gaya

ग़ज़ल

चाँद ओझल हो गया हर इक सितारा बुझ गया

अहमद हमदानी

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चाँद ओझल हो गया हर इक सितारा बुझ गया
आँधियाँ ऐसी चलीं फिर दिल हमारा बुझ गया

अब तो हम हैं और समुंदर और हवाएँ और रात
दूर से करता था झिलमिल इक किनारा बुझ गया

घूरते हैं लोग बैठे क्या ख़लाओं में कि अब
हर इशारा बुझ गया है हर सहारा बुझ गया

हर नज़र के सामने अब बे-कराँ पहली सी रीत
जगमगाता बात करता दश्त सारा बुझ गया

जम गई है बर्फ़ कैसी हर तरफ़ लोगो यहाँ
राख तक ठंडी पड़ी क्या क्या शरारा बुझ गया

शहर चुप हैं रास्ते ख़ामोश हैं चेहरे उदास
बस बगूले उड़ रहे हैं हर नज़ारा बुझ गया