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चाँद ने आज जब इक नाम लिया आख़िर-ए-शब | शाही शायरी
chand ne aaj jab ek nam liya aaKHir-e-shab

ग़ज़ल

चाँद ने आज जब इक नाम लिया आख़िर-ए-शब

हिमायत अली शाएर

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चाँद ने आज जब इक नाम लिया आख़िर-ए-शब
दिल ने ख़्वाबों से बहुत काम लिया आख़िर-ए-शब

हाए वो ख़्वाब कि ता'बीर से सरशार भी था
उस की आँखों से जो इनआ'म लिया आख़िर-ए-शब

हाए क्या प्यास थी जब उस के लबों से मैं ने
मुस्कुराता हुआ इक जाम लिया आख़िर-ए-शब

मैं जो गिरता भी तो क़दमों में उसी के गिरता
उस ने ख़ुद बढ़ के मुझे थाम लिया आख़िर-ए-शब

ज़िंदगी भर की मसाफ़त का मुदावा कहिए
उस की बाहोँ में जो आराम लिया आख़िर-ए-शब