EN اردو
चाँद ख़ुद को देख कर शरमाएगा | शाही शायरी
chand KHud ko dekh kar sharmaega

ग़ज़ल

चाँद ख़ुद को देख कर शरमाएगा

सीमा शर्मा मेरठी

;

चाँद ख़ुद को देख कर शरमाएगा
बादलों की ओट में छुप जाएगा

यूँ उदासी में न तू इस को गुज़ार
उम्र भर इस शाम को पछताएगा

आँख खुलते ही वो ढूँढेगा मुझे
ख़्वाब ऐसा उस को मेरा आएगा

चल तू कितना भी सलीक़े से मगर
रास्तों में ठोकरें तो खाएगा

रौंदता है आज जो इस ख़ाक को
एक दिन वो ख़ाक में मिल जाएगा

गुनगुना के देख तू भी ये ग़ज़ल
लय में इस की डूबता ही जाएगा