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चाक-ए-दिल भी कभी सिलते होंगे | शाही शायरी
chaak-e-dil bhi kabhi silte honge

ग़ज़ल

चाक-ए-दिल भी कभी सिलते होंगे

अदा जाफ़री

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चाक-ए-दिल भी कभी सिलते होंगे
लोग बिछड़े हुए मिलते होंगे

रोज़-ओ-शब के उन्ही वीरानों में
ख़्वाब के फूल तो खिलते होंगे

नाज़-परवर वो तबस्सुम से कहीं
सिलसिले दर्द के मिलते होंगे

हम भी ख़ुशबू हैं सबा से कहियो
हम-नफ़स रोज़ न मिलते होंगे

सुब्ह ज़िंदाँ में भी होती होगी
फूल मक़्तल में भी खिलते होंगे

अजनबी शहर की गलियों में 'अदा'
दिल कहाँ लोग ही मिलते होंगे