चाक-ए-दिल भी कभी सिलते होंगे
लोग बिछड़े हुए मिलते होंगे
रोज़-ओ-शब के उन्ही वीरानों में
ख़्वाब के फूल तो खिलते होंगे
नाज़-परवर वो तबस्सुम से कहीं
सिलसिले दर्द के मिलते होंगे
हम भी ख़ुशबू हैं सबा से कहियो
हम-नफ़स रोज़ न मिलते होंगे
सुब्ह ज़िंदाँ में भी होती होगी
फूल मक़्तल में भी खिलते होंगे
अजनबी शहर की गलियों में 'अदा'
दिल कहाँ लोग ही मिलते होंगे
ग़ज़ल
चाक-ए-दिल भी कभी सिलते होंगे
अदा जाफ़री