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चाक-ए-दामान-ए-क़बा दाग़-ए-जुनूँ-साज़ बहुत | शाही शायरी
chaak-e-daman-e-qaba dagh-e-junun-saz bahut

ग़ज़ल

चाक-ए-दामान-ए-क़बा दाग़-ए-जुनूँ-साज़ बहुत

अज़हर नक़वी

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चाक-ए-दामान-ए-क़बा दाग़-ए-जुनूँ-साज़ बहुत
हम ने पाए हैं दर-ए-यार से ए'ज़ाज़ बहुत

हम से पूछो कि ग़म-ए-फ़ुर्क़त-ए-याराँ क्या है
हम ने देखे हैं शब-ए-हिज्र के अंदाज़ बहुत

रात भर चाँद से होती रहें तेरी बातें
रात खोले हैं सितारों ने तिरे राज़ बहुत

आज क्यूँ पहली सी कुछ वहशत-ए-दिल कोई नहीं
आज मद्धम है शब-ए-ग़म तिरा आग़ाज़ बहुत

एक हम ही ने समेटी है उदासी तेरी
शाम-ए-ग़म हम ने उठाए हैं तिरे नाज़ बहुत