चाक चाक अपना गरेबाँ न हुआ था सो हुआ
वहशत-ए-दिल का जो सामाँ न हुआ था सो हुआ
या ख़ुदा दैर में सामाँ न हुआ था सो हुआ
काफ़िर-ए-इश्क़ मुसलमाँ न हुआ था सो हुआ
रुख़-ए-अनवर से मैं हैराँ न हुआ था सो हुआ
कभी ऐ ज़ुल्फ़ परेशाँ न हुआ था सो हुआ
ज़ुल्म-ओ-जौर ऐ शब-ए-हिज्राँ न हुआ था सो हुआ
ख़ाना-ए-गोर में मेहमाँ न हुआ था सो हुआ
चश्म-ए-इंसाफ़ से तूफ़ाँ न हुआ था सो हुआ
दिल-ए-'अख़्तर' चमनिस्ताँ न हुआ था सो हुआ
ग़ज़ल
चाक चाक अपना गरेबाँ न हुआ था सो हुआ
वाजिद अली शाह अख़्तर