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चाक चाक अपना गरेबाँ न हुआ था सो हुआ | शाही शायरी
chaak chaak apna gareban na hua tha so hua

ग़ज़ल

चाक चाक अपना गरेबाँ न हुआ था सो हुआ

वाजिद अली शाह अख़्तर

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चाक चाक अपना गरेबाँ न हुआ था सो हुआ
वहशत-ए-दिल का जो सामाँ न हुआ था सो हुआ

या ख़ुदा दैर में सामाँ न हुआ था सो हुआ
काफ़िर-ए-इश्क़ मुसलमाँ न हुआ था सो हुआ

रुख़-ए-अनवर से मैं हैराँ न हुआ था सो हुआ
कभी ऐ ज़ुल्फ़ परेशाँ न हुआ था सो हुआ

ज़ुल्म-ओ-जौर ऐ शब-ए-हिज्राँ न हुआ था सो हुआ
ख़ाना-ए-गोर में मेहमाँ न हुआ था सो हुआ

चश्म-ए-इंसाफ़ से तूफ़ाँ न हुआ था सो हुआ
दिल-ए-'अख़्तर' चमनिस्ताँ न हुआ था सो हुआ