चाहती है आख़िर क्या आगही ख़ुदा-मालूम 
कितने रंग बदलेगी ज़िंदगी ख़ुदा-मालूम 
कल तो ख़ैर ऐ रहबर तेरे साथ रहरव थे 
आज किस पे हँसती है गुमरही ख़ुदा-मालूम 
अब भी सुब्ह होती है अब भी दिन निकलता है 
जा छिपी कहाँ लेकिन रौशनी ख़ुदा-मालूम 
रास्ती गुरेज़ाँ है आश्ती हिरासाँ है 
किस से किस से उलझेगा आदमी ख़ुदा-मालूम 
अब तो वक़्त आया है डूब कर उभरने का 
कितनी कश्तियाँ डूबीं और अभी ख़ुदा-मालूम 
ज़ौक़-ए-नग़्मा-ए-पैराई तू ही बढ़ के दे आवाज़ 
कब से ग़र्क़-ए-हैरत है ख़ामुशी ख़ुदा-मालूम 
सिर्फ़ भीक माँगी थी हम ने आदमियत की 
क्यूँ बिफर गए 'याक़ूब' मुद्दई' ख़ुदा-मालूम
        ग़ज़ल
चाहती है आख़िर क्या आगही ख़ुदा-मालूम
याक़ूब उस्मानी

