चाहता हूँ तुझे नबी की क़सम
हज़रत-ए-मुर्तज़ा-अली की क़सम
मुझे ग़मगीं न छोड़ रोता आज
तुझे अपनी हँसी-ख़ुशी की क़सम
साफ़ कह बैठिए न जी में जो हो
आप को अपनी सादगी की क़सम
मैं दिलाई क़सम तो कहने लगे
हम नहीं मानते किसी की क़सम
सदक़ा होता हूँ जिस घड़ी मुझ को
याद आती है उस परी की क़सम
हाए कहना वो उस का चुपके से
तुझे 'इंशा' हमारी जी की क़सम
ग़ज़ल
चाहता हूँ तुझे नबी की क़सम
इंशा अल्लाह ख़ान