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चाहता हूँ तुझे नबी की क़सम | शाही शायरी
chahta hun tujhe nabi ki qasam

ग़ज़ल

चाहता हूँ तुझे नबी की क़सम

इंशा अल्लाह ख़ान

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चाहता हूँ तुझे नबी की क़सम
हज़रत-ए-मुर्तज़ा-अली की क़सम

मुझे ग़मगीं न छोड़ रोता आज
तुझे अपनी हँसी-ख़ुशी की क़सम

साफ़ कह बैठिए न जी में जो हो
आप को अपनी सादगी की क़सम

मैं दिलाई क़सम तो कहने लगे
हम नहीं मानते किसी की क़सम

सदक़ा होता हूँ जिस घड़ी मुझ को
याद आती है उस परी की क़सम

हाए कहना वो उस का चुपके से
तुझे 'इंशा' हमारी जी की क़सम