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चाहे तन मन सब जल जाए | शाही शायरी
chahe tan man sab jal jae

ग़ज़ल

चाहे तन मन सब जल जाए

हफ़ीज़ मेरठी

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चाहे तन मन सब जल जाए
सोज़-ए-दरूँ पर आँच न आए

शीशा टूटे ग़ुल मच जाए
दिल टूटे आवाज़ न आए

बहर-ए-मोहब्बत तौबा! तौबा!
तैरा जाए न डूबा जाए

ऐ वाए मजबूरी-ए-इंसाँ
क्या सोचे और क्या हो जाए

हाए वो नग़्मा जिस का मुग़न्नी
गाता जाए रोता जाए

इज़्ज़त दौलत आनी-जानी
मिल मिल जाए छिन छिन जाए

जिस को कहनी दिल की कहानी
सर-ता-पा धड़कन बन जाए

मय-ख़ाने की सम्त न देखो
जाने कौन नज़र आ जाए

काश हमारा फ़र्ज़-ए-मोहब्बत
ऐश-ए-मोहब्बत पर छा जाए