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चाहे सहरा में चाहे घर रहना | शाही शायरी
chahe sahra mein chahe ghar rahna

ग़ज़ल

चाहे सहरा में चाहे घर रहना

इबरत बहराईची

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चाहे सहरा में चाहे घर रहना
ज़िंदगी से क़रीब-तर रहना

जिस के घर जाना मेहमाँ बन कर
उस के घर यार मुख़्तसर रहना

चाहते हो अगर मिले शोहरत
रोज़ की ताज़ा इक ख़बर रहना

ये मुनाफ़ी है आदमियत के
बे-ख़बर और ख़ुद-निगर रहना

आँच आने न पाए इज़्ज़त पर
तुम गुहर हो सदा गुहर रहना

कारनामों से अपने ऐ हमदम
तुम अमर हो तो फिर अमर रहना

ये गुज़ारिश है तुम से ऐ 'इबरत'
उम्र-भर मेरे हम-सफ़र रहना