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चाहे जन्नत न मिले चाहे ख़ुदाई न मिले | शाही शायरी
chahe jannat na mile chahe KHudai na mile

ग़ज़ल

चाहे जन्नत न मिले चाहे ख़ुदाई न मिले

रमज़ान अली सहर

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चाहे जन्नत न मिले चाहे ख़ुदाई न मिले
है दुआ मेरी यही तुझ से जुदाई न मिले

कौन सी राह चुनी तुम ने मोहब्बत के लिए
चल के आ जाओ मगर आबला-पाई न मिले

साथ तेरा हो अगर मौत भी आए हमदम
ज़ीस्त जो मुझ को मिले तुझ से पराई न मिले

अजनबी अपने ही बन जाते हैं जिन से यारो
नाम को मेरे कभी ऐसी बुराई न मिले

जो बदल डाले मिरी बात का मतलब ही 'सहर'
मेरे अशआ'र में ऐसी भी सफ़ाई न मिले