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सोज़-ए-दुआ से साज़-ए-असर कौन ले गया | शाही शायरी
soz-e-dua se saz-e-asar kaun le gaya

ग़ज़ल

सोज़-ए-दुआ से साज़-ए-असर कौन ले गया

शाज़ तमकनत

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सोज़-ए-दुआ से साज़-ए-असर कौन ले गया
इक संग-ए-दर से निस्बत-ए-सर कौन ले गया

हर शय है ना-तमाम ये एहसास क्यूँ है आज
हर ऐब से जवाज़-ए-हुनर कौन ले गया

किस ने मिरी निगाह से पर्दे उठा दिए
इक रंज-ए-आगही कि इधर कौन ले गया

अर्सा हुआ के पाँव के नीचे ज़मीं नहीं
वो नक़्श-ए-पा वो राहगुज़र कौन ले गया

मेरे सफ़ीने मेरे लहू में नहा गए
मेरे सराब के वो भँवर कौन ले गया

ताख़ीर-ए-वक़्त-ए-दीद तिरी बरहमी का डर
कितना हसीन डर था वो डर कौन ले गया

हैराँ है अक़्ल 'शाज़' कि वहशत किधर गई
बस्ती उदास है कि खंडर कौन ले गया