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बूंदों की तरह छत से टपकते हुए आ जाओ | शाही शायरी
bundon ki tarah chhat se Tapakte hue aa jao

ग़ज़ल

बूंदों की तरह छत से टपकते हुए आ जाओ

जावेद सबा

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बूंदों की तरह छत से टपकते हुए आ जाओ
बरसात का मौसम है बरसते हुए आ जाओ

ख़ुश्बू हो तो झोंके की तरह फूल से निकलो
दिल हो तो मिरी जान धड़कते हुए आ जाओ

दो गाम पे मय-ख़ाना है दफ़्तर से निकल कर
इस भीगते मौसम में टहलते हुए आ जाओ

मौसम के बहाने गुल-ओ-गुलज़ार निकल आए
तुम भी कोई बहरूप बदलते हुए आ जाओ