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बू-ए-गुल बाद-ए-सबा लाई बहुत देर के बा'द | शाही शायरी
bu-e-gul baad-e-saba lai bahut der ke baad

ग़ज़ल

बू-ए-गुल बाद-ए-सबा लाई बहुत देर के बा'द

सलाम संदेलवी

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बू-ए-गुल बाद-ए-सबा लाई बहुत देर के बा'द
मेरे गुलशन में बहार आई बहुत देर के बा'द

छुप गया चाँद तो जल्वों की तमन्ना उभरी
आरज़ूओं ने ली अंगड़ाई बहुत देर के बा'द

नर्गिसी आँखों में ये अश्क-ए-नदामत तौबा
मौज-ए-मय शीशों में लहराई बहुत देर के बा'द

सेहन-ए-गुलशन में हसीं फूल खिले थे कब से
हम हुए ख़ुद ही तमाशाई बहुत देर के बा'द

मेहर-ओ-शबनम में मुलाक़ात हुई वक़्त-ए-सहर
ज़िंदगी मौत से टकराई बहुत देर के बा'द

मय-ए-गुल बट गई आसूदा लबों में पहले
तिश्ना कामों में शराब आई बहुत देर के बा'द

ज़ेहन भटका किया दश्त-ए-ग़म-ए-दौराँ में 'सलाम'
शब-ए-ग़म नींद मुझे आई बहुत देर के बा'द