बुतों को भूल जाते हैं ख़ुदा को याद करते हैं
बरहमन जब सफ़र सू-ए-इलाहाबाद करते हैं
न गर्दन मारते हैं वो न देते हैं कभी फाँसी
हसीनों को ये सब मशहूर क्यूँ जल्लाद करते हैं
सितम-ईजाद कहते हैं ये क्यूँ मा'शूक़ को शाइ'र
सितम भी क्या कोई शय है जिसे ईजाद करते हैं
हमें बतला न दें आशिक़ जो हैं रू-ए-किताबी पर
सबक़ है क्या कोई मा'शूक़ जिस को याद करते हैं
ग़ज़ल
बुतों को भूल जाते हैं ख़ुदा को याद करते हैं
ज़रीफ़ लखनवी