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बुत यहाँ मिलते नहीं हैं या ख़ुदा मिलता नहीं | शाही शायरी
but yahan milte nahin hain ya KHuda milta nahin

ग़ज़ल

बुत यहाँ मिलते नहीं हैं या ख़ुदा मिलता नहीं

अब्दुल्लतीफ़ शौक़

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बुत यहाँ मिलते नहीं हैं या ख़ुदा मिलता नहीं
अज़्म मुस्तहकम तो हो दुनिया में क्या मिलता नहीं

हम-सफ़ीरान-ए-जुनूँ यूँ हम से आगे बढ़ गए
क़ाफ़िला क्या है ग़ुबार-ए-क़ाफ़िला मिलता नहीं

अपनी सूरत देखना हो अपने दिल में देखिए
दिल सा दुनिया में कोई भी आइना मिलता नहीं

दे दिया है आप को दिल अब हिफ़ाज़त कीजिए
हर ख़ज़ाने में ये ला'ल-ए-बे-बहा मिलता नहीं

ढूँढता फिरता है मुझ को क्यूँ फ़रेब-ए-रंग-ओ-बू
मैं वहाँ हूँ ख़ुद जहाँ अपना पता मिलता नहीं