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बुरा मत मान इतना हौसला अच्छा नहीं लगता | शाही शायरी
bura mat man itna hausla achchha nahin lagta

ग़ज़ल

बुरा मत मान इतना हौसला अच्छा नहीं लगता

आशुफ़्ता चंगेज़ी

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बुरा मत मान इतना हौसला अच्छा नहीं लगता
ये उठते बैठते ज़िक्र-ए-वफ़ा अच्छा नहीं लगता

जहाँ ले जाना है ले जाए आ कर एक फेरे में
कि हर दम का तक़ाज़ा-ए-हवा अच्छा नहीं लगता

समझ में कुछ नहीं आता समुंदर जब बुलाता है
किसी साहिल का कोई मशवरा अच्छा नहीं लगता

जो होना है सो दोनों जानते हैं फिर शिकायत क्या
ये बे-मसरफ़ ख़तों का सिलसिला अच्छा नहीं लगता

अब ऐसे होने को बातें तो ऐसी रोज़ होती हैं
कोई जो दूसरा बोले ज़रा अच्छा नहीं लगता

हमेशा हँस नहीं सकते ये तो हम भी समझते हैं
हर इक महफ़िल में मुँह लटका हुआ अच्छा नहीं लगता