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बुलबुला फूटे पे हो जाता है आब | शाही शायरी
bulbula phuTe pe ho jata hai aab

ग़ज़ल

बुलबुला फूटे पे हो जाता है आब

इश्क़ औरंगाबादी

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बुलबुला फूटे पे हो जाता है आब
जान ओ जानाँ में है ये हस्ती हिजाब

क्या झलकते हैं दुर-ए-दंदाँ तिरे
ऐसी मोती में कहाँ है आब-ओ-ताब

हैगा नूरानी रुख़-ए-रौशन तिरा
रात को महताब दिन को आफ़्ताब

बे-तरह उस घर-बसे की याद में
अब तड़पता है दिल-ए-ख़ाना-ख़राब

शाद आँखों से किया है देख 'इश्क़'
अबरू-ए-जानाँ की बैत-ए-इंतिख़ाब