बुलबुला फूटे पे हो जाता है आब
जान ओ जानाँ में है ये हस्ती हिजाब
क्या झलकते हैं दुर-ए-दंदाँ तिरे
ऐसी मोती में कहाँ है आब-ओ-ताब
हैगा नूरानी रुख़-ए-रौशन तिरा
रात को महताब दिन को आफ़्ताब
बे-तरह उस घर-बसे की याद में
अब तड़पता है दिल-ए-ख़ाना-ख़राब
शाद आँखों से किया है देख 'इश्क़'
अबरू-ए-जानाँ की बैत-ए-इंतिख़ाब
ग़ज़ल
बुलबुला फूटे पे हो जाता है आब
इश्क़ औरंगाबादी