बुलबुल ने जिसे जा के गुलिस्तान में देखा
हम ने उसे हर ख़ार-ए-बयाबान में देखा
रौशन है वो हर एक सितारे में ज़ुलेख़ा
जिस नूर को तू ने सर-ए-कनआन में देखा
बरहम करे जमइय्यत-ए-कौनैन जो पल में
लटका वो तिरी ज़ुल्फ़-ए-परेशान में देखा
वाइज़ तू सुने बोले है जिस रोज़ की बातें
उस रोज़ को हम ने शब-ए-हिज्रान में देखा
ऐ ज़ख़्म-ए-जिगर सूदा-ए-अल्मास से ख़ू कर
कितना वो मज़ा था जो नमक-दान में देखा
'सौदा' जो तिरा हाल है इतना तो नहीं वो
क्या जानिए तू ने उसे किस आन में देखा
ग़ज़ल
बुलबुल ने जिसे जा के गुलिस्तान में देखा
मोहम्मद रफ़ी सौदा