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बुलबुल कहो गुल की क्या ख़बर है | शाही शायरी
bulbul kaho gul ki kya KHabar hai

ग़ज़ल

बुलबुल कहो गुल की क्या ख़बर है

इश्क़ औरंगाबादी

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बुलबुल कहो गुल की क्या ख़बर है
गुलशन में बहार किस क़दर है

मंज़ूर-ए-नज़र है जब से ख़ुश-चश्म
अपनी न किसू तरफ़ नज़र है

गर शैख़ ने आह की तो मत भूल
दिल में पत्थर के भी शरर है

नर्गिस जो खड़ी है 'इश्क़' हैरान
किस जानिए किस की राह पर है