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बुला रहा है मुझे आसमाँ तुम्हारी तरफ़ | शाही शायरी
bula raha hai mujhe aasman tumhaari taraf

ग़ज़ल

बुला रहा है मुझे आसमाँ तुम्हारी तरफ़

ख़लील मामून

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बुला रहा है मुझे आसमाँ तुम्हारी तरफ़
जला के निकला हूँ सब आशियाँ तुम्हारी तरफ़

मैं जानता हूँ कि सारे जहाँ हैं ख़त्म यहाँ
मुझे मिलेगा न कोई जहाँ तुम्हारी तरफ़

ख़मोशियों का बस इक सिलसिला है दूर तलक
न कोई लफ़्ज़ न कोई ज़बाँ तुम्हारी तरफ़

हर एक जीता है वुसअत में काएनातों के
कोई बनाता नहीं है मकाँ तुम्हारी तरफ़

मरे होऊँ को कोई मारे किस तरह आख़िर
न कोई तीर न कोई सिनाँ तुम्हारी तरफ़

न कोई दरिया न पर्बत न आशियाँ न शजर
ज़मीं है कोई न ही आसमाँ तुम्हारी तरफ़

ज़ुहूर-ए-इश्क़ की दुनिया को छोड़ आया हूँ
मैं ख़ुद को करता हूँ सब से निहाँ तुम्हारी तरफ़

मैं मंज़िलों से बहुत दूर आ गया 'मामून'
सफ़र ने खो दिए सारे निशाँ तुम्हारी तरफ़