बुला रहा है मुझे आसमाँ तुम्हारी तरफ़
जला के निकला हूँ सब आशियाँ तुम्हारी तरफ़
मैं जानता हूँ कि सारे जहाँ हैं ख़त्म यहाँ
मुझे मिलेगा न कोई जहाँ तुम्हारी तरफ़
ख़मोशियों का बस इक सिलसिला है दूर तलक
न कोई लफ़्ज़ न कोई ज़बाँ तुम्हारी तरफ़
हर एक जीता है वुसअत में काएनातों के
कोई बनाता नहीं है मकाँ तुम्हारी तरफ़
मरे होऊँ को कोई मारे किस तरह आख़िर
न कोई तीर न कोई सिनाँ तुम्हारी तरफ़
न कोई दरिया न पर्बत न आशियाँ न शजर
ज़मीं है कोई न ही आसमाँ तुम्हारी तरफ़
ज़ुहूर-ए-इश्क़ की दुनिया को छोड़ आया हूँ
मैं ख़ुद को करता हूँ सब से निहाँ तुम्हारी तरफ़
मैं मंज़िलों से बहुत दूर आ गया 'मामून'
सफ़र ने खो दिए सारे निशाँ तुम्हारी तरफ़
ग़ज़ल
बुला रहा है मुझे आसमाँ तुम्हारी तरफ़
ख़लील मामून