बुझे बुझे से शरारे मुझे क़ुबूल नहीं
सवाद-ए-शब में सितारे मुझे क़ुबूल नहीं
ये कोह-ओ-दश्त भी आईना-ए-बहार बने
फ़क़त चमन के नज़ारे मुझे क़ुबूल नहीं
तुम्हारे ज़ौक़-ए-करम पर बहुत हूँ शर्मिंदा
मुराद ये है सहारे मुझे क़ुबूल नहीं
मिसाल-ए-मौज समुंदर की सम्त लौट चलो
सुकूँ-ब-दोश किनारे मुझे क़ुबूल नहीं
मैं अपने ख़ूँ से जलाऊँगा रहगुज़र के चराग़
ये कहकशाँ ये सितारे मुझे क़ुबूल नहीं
'शकेब' जिस को शिकायत है खुल के बात करे
ढके-छुपे से इशारे मुझे क़ुबूल नहीं
ग़ज़ल
बुझे बुझे से शरारे मुझे क़ुबूल नहीं
शकेब जलाली