EN اردو
बोसा ज़ुल्फ़-ए-दोता का दो | शाही शायरी
bosa zulf-e-dota ka do

ग़ज़ल

बोसा ज़ुल्फ़-ए-दोता का दो

शाद लखनवी

;

बोसा ज़ुल्फ़-ए-दोता का दो
रद हों बलाएँ सदक़ा दो

रद्द-ओ-बदल क्या बोसा दो
लेना एक न देना दो

ज़ुल्फ़-ए-सियह के मुजरिम हैं
काले पानी भिजवा दो

घर में बुला के क़त्ल करो
दरवाज़े पर तेग़ा दो

चाहिए हम को ग़ुस्ल-ओ-कफ़न
कपड़े बदलें नहला दो

हम पे खुला है राज़-ए-कमर
और किसी को धोका दो

तुर्बत-ए-वाइज़ तक चलो 'शाद'
झूटे को हद तक पहुँचा दो