EN اردو
बोलती आँखें देखीं जागते लब देखें | शाही शायरी
bolti aankhen dekhin jagte lab dekhen

ग़ज़ल

बोलती आँखें देखीं जागते लब देखें

मंज़ूर आरिफ़

;

बोलती आँखें देखीं जागते लब देखें
जो सूरत हम ने देखी है सब देखें

जाने फ़ज़ा में कब चलती है मौज-ए-हवा
बादल हट कर चाँद दिखाए कब देखें

आँखें बंद करें तो क्या क्या जल्वे हैं
हर सू घोर अँधेरे लपकें जब देखें

चंदा चमके कलियाँ चटकीं फूल खिलें
जिस दिन उस को देखें ख़्वाब अजब देखें

जिस्म इक राहगुज़र है दिल मिट्टी का दिया
गुल होता है कब ये चराग़-ए-शब देखें

शायद नूर-ए-सहर फैला हो अब हर सू
'आरिफ़' दिल पर पत्थर रख कर अब देखें