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बिस्मिल किसी को रखना रस्म-ए-वफ़ा नहीं है | शाही शायरी
bismil kisi ko rakhna rasm-e-wafa nahin hai

ग़ज़ल

बिस्मिल किसी को रखना रस्म-ए-वफ़ा नहीं है

आसिफ़ुद्दौला

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बिस्मिल किसी को रखना रस्म-ए-वफ़ा नहीं है
और मुँह छुपा के चलना शर्त-ए-वफ़ा नहीं है

ज़ुल्फ़ों को शाना कीजे या भौं बना के चलिए
गर पास दिल न रखिए तो ये अदा नहीं है

इक रोज़ वो सितमगर मुझ से हुआ मुख़ातिब
मैं ने कहा कि प्यारे अब ये रवा नहीं है

मरते हैं हम तड़पते फिरते हो तुम हर इक जा
जाना कि तुम को हम से कुछ मुद्दआ' नहीं है

तब सुन के शोख़ दिलकश झुँझला के कहने लागा
क्या वज़्अ' मेरी 'आसिफ़' तू जानता नहीं है