बिसात-ए-रंग-ओ-बू आतिश-फ़िशाँ मालूम होती है
रग-ए-गुल में निहाँ बर्क़-ए-तपाँ मालूम होती है
तमन्ना ही से क़ाएम है वक़ार-ए-नौजवानी भी
तमन्ना गरचे जिंस-ए-राएगाँ मालूम होती है
किनारा है कोई इस का न इस का कोई साहिल है
मोहब्बत एक बहर-ए-बे-कराँ मालूम होती है
गुज़िश्ता वारदातों पर मैं जब भी ग़ौर करता हूँ
मुझे हर वारदात इक दास्ताँ मालूम होती है
वफ़ा-कोशी का जज़्बा सर्द पड़ जाता है पीरी में
वफ़ा परवर्दा-ए-फ़िक्र-ए-जवाँ मालूम होती है
असर बाक़ी अभी तक है निगाहों में जवानी का
मुझे हर एक शय अब भी जवाँ मालूम होती है
जफ़ा-ओ-जौर के क़िस्से हैं अब भी मो'तबर 'फ़ारिग़'
वफ़ा की बात ज़ेब-ए-दास्ताँ मालूम होती है

ग़ज़ल
बिसात-ए-रंग-ओ-बू आतिश-फ़िशाँ मालूम होती है
लक्ष्मी नारायण फ़ारिग़