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बिना जाने किसी के हो गए हम | शाही शायरी
bina jaane kisi ke ho gae hum

ग़ज़ल

बिना जाने किसी के हो गए हम

शोहरत बुख़ारी

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बिना जाने किसी के हो गए हम
ग़ुबार-ए-कारवाँ में खो गए हम

रगों में बर्फ़ सी जमने लगी है
सँभालो अपनी यादों को गए हम

तुम्हारी मुस्कुराहट रच गई है
हर उस ग़ुंचे में जिस पर रो गए हम

किसे मालूम क्या महफ़िल पे गुज़री
फ़साना कहते कहते सो गए हम

तिरी चाहत के सन्नाटों से डर कर
हुजूम-ए-ज़िंदगी में खो गए हम

न रास आई किसी की छाँव 'शोहरत'
ख़ुद अपनी धूप ही में सो गए हम