बिन देखे उस के जावे रंज ओ अज़ाब क्यूँ कर
वो ख़्वाब में तो आवे पर आवे ख़्वाब क्यूँ कर
पास उस ने जो बिठाया दिल और तिलमिलाया
अब जाएगा ख़ुदाया ये इज़्तिराब क्यूँ कर
वो जब से है सफ़र में दिल मुज़्तरिब है बर में
बैठें हम अपने घर में ख़ाना-ख़राब क्यूँ कर
साक़ी फ़िराक़-ए-जानाँ हल्क़ अपने का है दरबाँ
उतरे गले से फिर याँ क़िर्त-ए-शराब क्यूँ कर
ग़मगीं हैं जिस के ग़म से वाक़िफ़ नहीं वो हम से
यारब फिर इस अलम से हो सब्र-ओ-ताब क्यूँ कर
वाँ है सवाल हर दम रखिए मिलाप कम कम
हैरान हैं कि दें हम इस का जवाब क्यूँ कर
छोटा है सिन तुम्हारा मुखड़ा है प्यारा प्यारा
फिर हो भला गवारा शर्म-ओ-हिजाब क्यूँ कर
मुझ को तो है ये हैरत ऐसी रही जो इस्मत
तो होगा सर्फ़-ए-इशरत अहद-ए-शबाब क्यूँ कर
अब तौर की तो अपने 'जुरअत' ग़ज़ल सुना दे
देखें तो इस के होंगे शेर इंतिख़ाब क्यूँ कर
ग़ज़ल
बिन देखे उस के जावे रंज ओ अज़ाब क्यूँ कर
जुरअत क़लंदर बख़्श