EN اردو
बिखरी थी हर सम्त जवानी रात घनेरी होने तक | शाही शायरी
bikhri thi har samt jawani raat ghaneri hone tak

ग़ज़ल

बिखरी थी हर सम्त जवानी रात घनेरी होने तक

शायान क़ुरैशी

;

बिखरी थी हर सम्त जवानी रात घनेरी होने तक
लेकिन मैं ने दिल की न मानी रात घनेरी होने तक

दर्द का दरिया बढ़ते बढ़ते सीने तक आ पहुँचा है
और चढ़ेगा थोड़ा पानी रात घनेरी होने तक

आग पे चलना क़िस्मत में है बर्फ़ पे रुकना मजबूरी
कौन सुनेगा अपनी कहानी रात घनेरी होने तक

उस के बिना ये गुलशन भी अब सहरा जैसा लगता है
लगता है सब कुछ बे-मा'नी रात घनेरी होने तक

ख़ून-ए-जिगर से हम को चराग़ाँ करना है सो करते हैं
अपनी है ये रीत पुरानी रात घनेरी होने तक

जिन होंटों ने प्यासे रह कर हम को अपने जाम दिए
याद करो उन की क़ुर्बानी रात घनेरी होने तक

दिल में अपने ज़ख़्म-ए-तमन्ना आँखों में कुछ ख़्वाब लिए
बरसों हम ने ख़ाक है छानी रात घनेरी होने तक