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बिखरा है कई बार समेटा है कई बार | शाही शायरी
bikhra hai kai bar sameTa hai kai bar

ग़ज़ल

बिखरा है कई बार समेटा है कई बार

नईम जर्रार अहमद

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बिखरा है कई बार समेटा है कई बार
ये दिल तिरे अतराफ़ को निकला है कई बार

जिस चाँद के दीदार की हसरत में है दुनिया
वो शाम ढले घर मिरे उतरा है कई बार

सुन कर तुझे मदहोश ज़माना है मुझे देख
जिस ने तिरी आवाज़ को देखा है कई बार

अफ़्सोस कि है इश्क़-ए-यगाना से बहुत दूर
यारो तुम्हें हर रोज़ जो होता है कई बार