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बिखरा बिखरा हस्ती का शीराज़ा है | शाही शायरी
bikhra bikhra hasti ka shiraaza hai

ग़ज़ल

बिखरा बिखरा हस्ती का शीराज़ा है

रहबर जौनपूरी

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बिखरा बिखरा हस्ती का शीराज़ा है
दीवारों पर ख़ून अभी तक ताज़ा है

तुम पर कोई वार न होगा पीछे से
दोस्त नहीं ये दुश्मन का दरवाज़ा है

इक इक कर के सारी क़द्रें टूट गईं
ये अपनी ख़ुद्दारी का ख़म्याज़ा है

कौन किसी की सुनता है इस बस्ती में
चीख़ तुम्हारी सहरा का आवाज़ा है

अंदर से सब क़ातिल हैं सब ख़ूनी हैं
चेहरों पर इख़्लास का जिन के ग़ाज़ा है

हम-साया ही हम-साए को लूटेगा
'रहबर' मेरा ऐसा अब अंदाज़ा है