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बिकेगी उस की ही दस्तार तय है | शाही शायरी
bikegi uski hi dastar tai hai

ग़ज़ल

बिकेगी उस की ही दस्तार तय है

डॉक्टर आज़म

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बिकेगी उस की ही दस्तार तय है
कि जिस की क़ीमत-ए-किरदार तय है

हुआ था हादिसा कुछ और लेकिन
लिखेगा और कुछ अख़बार तय है

बड़े आँगन पे इतराओ न इतना
उठेगी उस में भी दीवार तय है

है नालायक़ मगर सरदार का है
बनेगा बेटा ही सरदार तय है

है मुंसिफ़ ही गिरफ़्तार-ए-तअ'स्सुब
अदालत में हमारी हार तय है

न ले जा हम को उस महफ़िल में ऐ दिल
जहाँ होना ज़लील-ओ-ख़्वार तय है

हुनर है ऐसे रिश्तों को निभाना
जहाँ हर बात पर तकरार तय है

सदा सच बोलते हो तुम भी 'आज़म'
तुम्हारे वास्ते भी दार तय है