EN اردو
बिजलियों की हँसी उड़ाने को | शाही शायरी
bijliyon ki hansi uDane ko

ग़ज़ल

बिजलियों की हँसी उड़ाने को

नरेश कुमार शाद

;

बिजलियों की हँसी उड़ाने को
ख़ुद जलाता हूँ आशियाने को

रो रहा है अगरचे दिल फिर भी
मुस्कुराता हूँ मुस्कुराने को

मुतलक़न दिलकशी न थी उस में
कौन सुनता मिरे फ़साने को

छीन ली उस ने ताक़त-ए-परवाज़
आग लग जाए आशियाने को

'शाद' इतना ही हम समझते हैं
हम समझते नहीं ज़माने को