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बीती है ये सब दिल पे है सब दिल की ज़बानी | शाही शायरी
biti hai ye sab dil pe hai sab dil ki zabani

ग़ज़ल

बीती है ये सब दिल पे है सब दिल की ज़बानी

इश्क़ औरंगाबादी

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बीती है ये सब दिल पे है सब दिल की ज़बानी
हिज्राँ की जो दिलबर से मैं कहता हूँ कहानी

तू यार अज़ीज़ आँखों में है महर-वशों के
नीं है मह-ए-कनआँ भी तिरे हुस्न के सानी

अबरू के तिरे चीन के क्या वस्फ़ कहूँ मैं
शमशीर में जौहर से है ख़ूबी की निशानी

सर पर हो सर-ए-बज़्म कहाँ शम्अ में है आब
गर इश्क़ की आँखें जो करें अश्क-फ़िशानी