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बीते वक़्त का चेहरा ढूँढता रहता है | शाही शायरी
bite waqt ka chehra DhunDhta rahta hai

ग़ज़ल

बीते वक़्त का चेहरा ढूँढता रहता है

विजय शर्मा अर्श

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बीते वक़्त का चेहरा ढूँढता रहता है
दिल पागल है क्या क्या ढूँढता रहता है

ख़ामोशी भी एक सदा ही है जिस को
सुनने वाला गोया ढूँढता रहता है

शबनम शबनम पिघली पिघली यादें हैं
मेरा ग़म तो सहरा ढूँढता रहता है

उस ने अपनी मंज़िल हासिल कर ली है
फिर क्यूँ घर का रस्ता ढूँढता रहता है

दिल सब से मिलता है हल्के लहजे में
सब में कुछ कुछ तुझ सा ढूँढता रहता है

बेच दिया गुल-दान विरासत का उस ने
भाई मिरा अब गमला ढूँढता रहता है

जेब में दिल थैले में पत्थर ले कर 'अर्श'
शहर कोई दीवाना ढूँढता रहता है