बीते हुए दिनों की हलावत कहाँ से लाएँ
इक मीठे मीठे दर्द की राहत कहाँ से लाएँ
ढूँडें कहाँ वो नाला-ए-शब-ताब का जमाल
आह-ए-सहर-गही की सबाहत कहाँ से लाएँ
समझाएँ कैसे दिल की नज़ाकत का माजरा
ख़ामोशी-ए-नज़र की ख़िताबत कहाँ से लाएँ
तर्क-ए-तअल्लुक़ात का हो जिस से एहतिमाल
बेबाकियों में इतनी सदाक़त कहाँ से लाएँ
अफ़्सुर्दगी-ए-ज़ब्त-ए-अलम आज भी सही
लेकिन नशात-ए-ज़ब्त-ए-मसर्रत कहाँ से लाएँ
हर फ़त्ह के ग़ुरूर में बे-वजह बे-सबब
एहसाह-ए-इन्फ़िआल-ए-हज़ीमत कहाँ से लाएँ
आसूदगी-ए-लुत्फ़-ओ-इनायत के साथ साथ
दिल में दबी दबी सी क़यामत कहाँ से लाएँ
वो जोश-ए-इज़्तिराब पे कुछ सोचने के बाद
हैरत कहाँ से लाएँ नदामत कहाँ से लाएँ
हर लहज़ा ताज़ा ताज़ा बलाओं का सामना
ना-आज़मूदा-कार की जुरअत कहाँ से लाएँ
है आज भी निगाह-ए-मोहब्बत की आरज़ू
पर ऐसी इक निगाह की क़ीमत कहाँ से लाएँ
सब कुछ नसीब हो भी तो ऐ शोरिश-ए-हयात
तुझ से नज़र चुराने की आदत कहाँ से लाएँ
ग़ज़ल
बीते हुए दिनों की हलावत कहाँ से लाएँ
मुईन अहसन जज़्बी