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बीत गया है प्यार का मौसम घर घर सहरा जैसा है | शाही शायरी
bit gaya hai pyar ka mausam ghar ghar sahra jaisa hai

ग़ज़ल

बीत गया है प्यार का मौसम घर घर सहरा जैसा है

मोहम्मद सालिम

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बीत गया है प्यार का मौसम घर घर सहरा जैसा है
दिल के दरवाज़े पर अब तो ख़ामोशी का पहरा है

सात समुंदर पार जो आ कर दश्त-ए-फ़ज़ा को देखा है
रेत का मंज़र आँखों में है दिल में ख़ौफ़ का दरिया है

उस की कश्ती डूब गई थी बीच भँवर में आ के मगर
किस मुश्किल से जान बचा कर साहिल तक वो आया है

ज़ुल्मत की राहों में हम भी गुम हो कर रह जाते मगर
नूर का पैकर साथ हमारे आगे आगे चलता है

भूल गया हूँ सब कुछ 'सालिम' मुझ को कुछ भी याद नहीं
यादों के आईने में अब इक इक चेहरा धुँदला है