बिगड़ कर अदू से दिखाते हैं आप
बनावट की बातें बनाते हैं आप
बढ़ाने को क़िस्से शब-ए-वस्ल में
फ़साने अदू के सुनाते हैं आप
किसी को तजल्ली किसी को जवाब
अजब कुछ लगाते-बुझाते हैं आप
बिगड़ने के अस्बाब लाज़िम नहीं
नई बात दिल से बनाते हैं आप
न आना था गर आए क्यूँ ख़्वाब में
मगर सोते फ़ित्ने जगाते हैं आप
बंधे क्या किसी से उम्मीद-ए-विसाल
नज़र से नज़र कब मिलाते हैं आप
ग़ज़ल
बिगड़ कर अदू से दिखाते हैं आप
ज़हीर देहलवी