EN اردو
बिदअ'त मस्नून हो गई है | शाही शायरी
bidat masnun ho gai hai

ग़ज़ल

बिदअ'त मस्नून हो गई है

नज़्म तबा-तबाई

;

बिदअ'त मस्नून हो गई है
उम्मत मतऊन हो गई है

क्या कहना तिरी दुआ का ज़ाहिद
गर्दूं का सुतून हो गई है

रहने दो अजल जो घात में है
मुझ पर मफ़्तून हो गई है

हसरत को ग़ुबार-ए-दिल में ढूँडो
ज़िंदा मदफ़ून हो गई है

वहशत का था नाम अव्वल अव्वल
अब तो वो जुनून हो गई है

वाइज़ ने बुरी नज़र से देखा
मय शीशे में ख़ून हो गई है

आरिज़ के क़रीन गुलाब का फूल
हम-रंग की दून हो गई है

बंदा हूँ तिरा ज़बान-ए-शीरीं
दुनिया मम्नून हो गई है

'हैदर' शब-ए-ग़म में मर्ग-ए-नागाह
शादी का शुगून हो गई है