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बिछड़ कर उन से यूँ ग़म में गुज़ारी ज़िंदगी हम ने | शाही शायरी
bichhaD kar un se yun gham mein guzari zindagi humne

ग़ज़ल

बिछड़ कर उन से यूँ ग़म में गुज़ारी ज़िंदगी हम ने

एहसान दानिश

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बिछड़ कर उन से यूँ ग़म में गुज़ारी ज़िंदगी हम ने
सहर तारीक देखी सुर्ख़ पाई चाँदनी हम ने

हमें दा'वा नहीं तन्हा निबाही दोस्ती हम ने
मोहब्बत को सँभाला है कभी तुम ने कभी हम ने

ख़ुशी ग़म में नज़र आई ख़ुशी में ग़म नज़र आया
अभी दुनिया पे डाली थी निगाह-ए-सरसरी हम ने

बड़ी बेचारगी निकली बहुत ही नारसी पाई
अज़ल के रोज़ बढ़ कर ले तो ली थी बंदगी हम ने

जहाँ साज़-ए-मोहब्बत पर मुग़न्नी गा नहीं सकता
वहाँ नग़्मा अलापा है कभी तुम ने कभी हम ने

तुम्हें होगे निगाह-ए-शौक़ का मरकज़ तुम्हीं होगे
अगर इस ज़िंदगी के बा'द पाई ज़िंदगी हम ने

हमारे सामने हर-वक़्त अंजाम-ए-शिकायत थी
कही को अन-कही कर दी सुनी को अन-सुनी हम ने

भरेगी इस में रंग 'एहसान' दुनिया इंक़िलाबों से
लहू से अपने इक तस्वीर ऐसी खींच दीं हम ने