भूलने वाले तुझे याद किया है बरसों
दिल-ए-वीराँ को यूँ आबाद किया है बरसों
साथ जो दे न सका राह-ए-वफ़ा में अपना
बे-इरादा भी उसे याद किया है बरसों
ग़म जहाँ में वो रफ़ीक़-ए-अबदी है अपना
जिस ने हर हाल में दिल शाद किया है बरसों
भूल सकता हूँ भला गर्दिश-ए-दौराँ तुझ को
रोज़ तू ने सितम ईजाद किया है बरसों
कब गिरफ़्तार-ए-ख़म-ए-गेसू-ए-हिज्राँ न रहा
कब तिरे दर्द ने आज़ार किया है बरसों
अब भी 'अनवार' पशेमानी-ए-ख़ातिर हो न क्यूँ
उम्र-ए-रफ़्ता तुझे बर्बाद किया है बरसों
ग़ज़ल
भूलने वाले तुझे याद किया है बरसों
अनवापुल हसन अनवार