भूलना चाहता कहाँ हूँ मैं
दर्द है और बस रवाँ हूँ मैं
आज कुछ याद आ रही हो यूँ
तुम ज़मीं और आसमाँ हूँ मैं
क्या हुआ जो हिसाब माँगा है
क्या ग़मों की कोई दुकाँ हूँ मैं
रौशनी कुछ चराग़ की लाओ
जिस जगह दफ़्न हूँ निहाँ हूँ मैं
दिन दिखाए ज़माने ने ऐसे
अब नहीं मीर-ए-कारवाँ हूँ मैं
सादगी है अदा में उस की जो
इश्क़ में यार राएगाँ हूँ मैं
ज़ात 'ख़ुद्दार' की दिखी जब जब
शाइ'री का हसीं समाँ हूँ मैं

ग़ज़ल
भूलना चाहता कहाँ हूँ मैं
मधुकर झा ख़ुद्दार